रणनीति विकास

मुद्रा संकट के उदाहरण

मुद्रा संकट के उदाहरण
कई अर्थशास्त्रियों ने इस बारे में सिद्धांतों की पेशकश की है कि वित्तीय संकट कैसे विकसित होते हैं और उन्हें कैसे रोका जा सकता है। हालाँकि, कोई आम सहमति नहीं है, और समय-समय पर वित्तीय संकट आते रहते हैं।

विश्वविद्यालयों को चलाने का काम चांसलर के पास है, सरकार चलाना चुनी हुई सरकार के पास है। . - Latest Tweet by ANI Hindi News

विश्वविद्यालयों को चलाने का काम चांसलर के पास है, सरकार चलाना चुनी हुई सरकार के पास है। मुझे एक उदाहरण दें जहां मैंने सरकार के कारोबार मुद्रा संकट के उदाहरण में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, मैं उसी क्षण इस्तीफा दे दूंगा: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान https://t.co/dssxyYBclX— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 15, 2022

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मुद्रा विनिमय समझौते की प्रक्रिया

आइए इसकी कार्यप्रणाली को एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं। मान लें “रमेश” जो कि, एक भारतीय उद्योगपति है को अमेरिका में अपनी एक फर्म के लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर की पाँच वर्षों के लिए आवश्यकता है। एक डॉलर को 75 रुपयों के बराबर समझा जाए तो एक लाख अमेरिकी डॉलर की रुपयों में कीमत 75 लाख रुपये होगी। वहीं “स्टीव” जो कि, एक अमेरिकी उद्योगपति है को भारत में अपनी किसी कंपनी के खर्च के लिए 75 लाख भारतीय रुपयों की 5 वर्षों के लिए आवश्यकता है

रमेश यदि किसी अमेरिकी बैंक से ऋण लेता है तो उसे स्टीव की तुलना में अधिक ब्याज चुकाना पड़ेगा इसके अतिरिक्त यदि भविष्य में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ तो रमेश को ब्याज तथा मूलधन के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसके अलावा स्टीव को भी भारतीय बैंक से ऋण लेने पर रमेश की तुलना में अधिक ब्याज देना होगा। उदाहरण के तौर पर माना रमेश को भारत में 75 लाख रुपयों तथा अमेरिका में 1 लाख डॉलर का ऋण क्रमशः 10% तथा 8% की वार्षिक ब्याज दर पर मिलता है, जबकि स्टीव को यही ऋण 15% तथा 6% की सालाना ब्याज दर पर प्राप्त होता है।

देशों के मध्य मुद्रा विनिमय समझौते

लोगों के अलावा विभिन्न देशों की सरकारें भी इसका उपयोग करती हैं। जैसा कि, मुद्रा संकट के उदाहरण आप जानते हैं वर्तमान में अमेरिकी डॉलर एक प्रमुख वैश्विक मुद्रा के रूप में प्रचलन में है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए किसी भी देश को डॉलर की आवश्यकता होती है अतः सभी देशों के मुद्रा संकट के उदाहरण लिए विदेशी मुद्रा भंडार में अधिक मात्रा में डॉलर हो यह अहम हो जाता है। इस प्रकार माँग बड़ने के कारण अमेरिकी डॉलर अन्य देशों की घरेलू मुद्रा की तुलना में मजबूत होता जाता है तथा वैश्विक बाजार में अमेरिकी मुद्रा का प्रभुत्व एवं एकाधिकार बढ़ता है।

किसी आर्थिक संकट या व्यापार घाटे की स्थिति में देश के केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्रा भंडार से उसकी भरपाई करनी पड़ती है ताकि उस देश की घरेलू मुद्रा और डॉलर की विनिमय दर स्थिर बनी रहे। किंतु यदि आर्थिक संकट बड़ा हो अर्थात विदेशी मुद्रा भंडार में उपलब्ध डॉलर से भी जब घाटे की पूर्ति न कि जा सके तब ऐसी स्थिति में IMF जैसी संस्थाओं या किसी देश से ऋण लेने की आवश्यकता पड़ती है, साल 1991 मुद्रा संकट के उदाहरण मुद्रा संकट के उदाहरण में आया आर्थिक संकट इसका उदाहरण है।

समझौते की आवश्यकता

हमने आर्थिक संकट से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऋण की चर्चा की किन्तु विदेशी मुद्रा में ऋण लेने का एक मुख्य नुकसान यह है की भविष्य में यदि भारतीय रुपया डॉलर की तुलना में कमजोर हुआ तो भारत को ऋण में ली गई राशि से अधिक मूलधन चुकाना पड़ेगा। इसके अलावा उच्च ब्याज दर भी एक महत्वपूर्ण समस्या है।

इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में मुद्रा विनिमय या Currency Swap समझौता सामने आया है। इसके तहत कोई दो देश यह समझौता करते हैं कि, किसी निश्चित सीमा तक वे देश निर्धारित विनिमय दर (Exchange Rate) तथा कम ब्याज पर एक दूसरे की घरेलू मुद्रा या कोई तीसरी मुद्रा जैसे डॉलर खरीद सकेंगे।

भारत की स्थिति

साल 2018 में भारत तथा जापान के मध्य 75 बिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता (Currency Swap Agreement in Hindi) हुआ है। इसके अनुसार भारत अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति या व्यापार घाटे की परिस्थिति में अपनी मुद्रा देकर जापान से 75 बिलियन डॉलर तक की राशि के येन या डॉलर तय विनिमय दर पर एक निश्चित अवधि के लिए खरीद सकता है।

अवधि पूर्ण हो जाने पर जापान भारत को उसकी मुद्रा लौटाकर दिए गए डॉलर या येन वापस ले लेगा जैसा की हमने रमेश तथा स्टीव के उदाहरण में देखा। इसके अतिरिक्त सार्क देशों के साथ भी 2 बिलियन डॉलर का समझौता करने का लक्ष्य है, जिसके चलते जुलाई 2020 में श्रीलंका से 400 मिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता किया जा चुका है।

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Arthaat

अर्थार्थ
यह भी खूब रही। भारत, चीन, रूस, ब्राजील वाली दुनिया समझ रही थी कि संकट के सभी गृह नक्षत्र यूरो और डॉलर जोन के खाते में हैं, उनका संसार तो पूरी तरह निरापद है। लेकिन संकट इनके दरवाजे पर भी आ पहुंचा। यह पिछड़ती दुनिया जिस विदेशी मुद्रा संकट के उदाहरण पूंजी केजरिए उभरती दुनिया (इमर्जिंग मार्केट) में बदल गई वही पूंजी इनके आंगन में संकट रोपने लगी है। मंदी से हलकान अमेरिका व यूरोप अपने बाजारों को सस्ती पूंजी की गिजा खिला रहे हैं। यह पूंजी लेकर विदेशी निवेशक उभरते वित्तीय बाजारों में शरणार्थियों की तरह उतर रहे हैं। तीसरी दुनिया के इन मुल्कों की अच्छी आर्थिक सेहत ही इनके जी का जंजाल हो गई है। शेयर बाजारों में आ रहे डॉलरों ने इनके विदेशी मुद्रा भंडारों को फुला कर इनकी मुद्राओं को पहलवान कर दिया है। जिससे निर्यातक डर कर दुबक रहे हैं। विदेशी पूंजी की इस बाढ़ से शेयर बाजारों और अचल संपत्ति का बाजार गुब्बारा फिर फूलने लगा है। कई देशों में मुद्रास्फीति (भारत में पहले से) मंडराने लगी है। हमेशा से चहते विदेशी निवेशक अचानक पराए हो चले हैं। कोई ब्याज दरें बढ़ाकर इन्हें रोक रहा है तो कोई सीधे-सीधे विदेशी पूंजी पर पाबंदिया आयद किए दे रहा है। 1997 के मुद्रा संकट जैसे हालात उभरते बाजारों मुद्रा संकट के उदाहरण की सांकल बजा रहे हैं।
कांटेदार पूंजी
पूंजी का आना हमेशा सुखद ही नहीं होता। दुनिया अगर असंतुलित हो, पूंजी अचानक कांटे चुभाने लगती है। ताजी मंदी और उसके बाद ऋण संकट के चलते अमेरिका व यूरोप के केंद्रीय बैंकों ने अपने बाजारों में पैसे का मोटा पाइप खोल दिया। ब्याज दरें तलहटी (अमेरिका में ब्याज दर शून्य) पर आ गईं ताकि निवेशक और उद्योगपति सस्ता कर्ज ले अर्थव्यवस्था को निवेश की खुराक देकर खड़ा करें। अव्वल तो इस सस्ते कर्ज से इन देशों में कोई बड़ा निवेश नहीं मुद्रा संकट के उदाहरण हुआ और जो हुआ वह भी निर्यात के लिए था, मगर वहां दाल गलनी मुश्किल थी क्योंकि कमजोर युआन की खुराक पचा कर चीन
दुनिया के बाजार में पसीने छुड़ा रहा है। इसलिए यह सस्ते डॉलर मुद्रा संकट के उदाहरण अंतत: वित्तीय बाजार के निवेशकों के काम आए। पिछले एक डेढ़ साल से यह विदेशी पूंजी भारत, चीन, ब्राजील जैसे बाजारों की तरफ बह रही है जो निरापद है और तेज दौड़ रही है। सिर्फ विदेशी निवेशक ही क्यों इन देशों के उद्यमी सस्ते डॉलरों की नदी विदेशी मुद्रा कर्ज (ईसीबी) की बाल्टी भर लाए। विश्व की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट बताती है कि अगर विकसित देशों के बाजार से सिर्फ 10 फीसदी निवेश भी उभरते बाजारों की तरफ जाता है तो करीब 485 बिलियन डॉलर इन देशों में पहुंच जाएंगे। . यह आकलन सही बैठता दिख रहा है क्योंकि एशिया में चीन, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और हांगकांग के विदेशी मुद्रा भंडार 25 से 39 फीसदी तक बढ़े हैं।

मंदी क्या है

अर्थशास्त्र में, आर्थिक गतिविधि में सामान्य गिरावट होने पर मंदी एक व्यापार चक्र संकुचन है।

आम तौर पर मंदी तब होती है जब खर्च में व्यापक गिरावट होती है (एक प्रतिकूल मांग झटका)। यह विभिन्न घटनाओं से शुरू हो सकता है, जैसे कि एक वित्तीय संकट, एक बाहरी व्यापार झटका, एक प्रतिकूल आपूर्ति झटका, एक आर्थिक बुलबुले का फटना, या एक बड़े पैमाने पर मानवजनित या प्राकृतिक आपदा (जैसे एक महामारी)। संयुक्त राज्य अमेरिका में, इसे "बाजार में फैली आर्थिक गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण गिरावट, कुछ महीनों से अधिक समय तक चलने, वास्तविक जीडीपी, वास्तविक आय, रोजगार, औद्योगिक उत्पादन और थोक-खुदरा बिक्री में सामान्य रूप से दिखाई देने" के रूप में परिभाषित किया गया है।

यूनाइटेड किंगडम में, इसे लगातार दो तिमाहियों के लिए नकारात्मक आर्थिक विकास के रूप में परिभाषित किया गया है।

सरकारें आमतौर पर विस्तारवादी व्यापक आर्थिक नीतियों को अपनाकर मंदी का जवाब देती हैं, जैसे कि धन की आपूर्ति में वृद्धि या सरकारी खर्च में वृद्धि और कराधान में कमी।

आर्थिक मंदी क्या है

आर्थिक मंदी एक या एक से अधिक अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधियों में निरंतर, दीर्घकालिक मंदी की अवधि है। यह मंदी की तुलना में अधिक गंभीर आर्थिक मंदी है, जो एक सामान्य व्यापार चक्र के दौरान आर्थिक गतिविधियों में मंदी है।

आर्थिक मंदी उनकी लंबाई की विशेषता है, बेरोजगारी में असामान्य रूप से बड़ी वृद्धि, ऋण की उपलब्धता में गिरावट (अक्सर बैंकिंग या वित्तीय संकट के किसी रूप के कारण), सिकुड़ते उत्पादन के रूप में खरीदार सूख मुद्रा संकट के उदाहरण जाते हैं और आपूर्तिकर्ता उत्पादन और निवेश में कटौती करते हैं, और अधिक संप्रभु ऋण चूक सहित दिवालिया, व्यापार और वाणिज्य की मात्रा में काफी कमी (विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार), साथ ही अत्यधिक अस्थिर सापेक्ष मुद्रा मूल्य में उतार-चढ़ाव (अक्सर मुद्रा अवमूल्यन के कारण)। मूल्य अपस्फीति, वित्तीय संकट, स्टॉक मार्केट क्रैश, और बैंक विफलताएं भी एक अवसाद के सामान्य तत्व हैं जो आमतौर पर मंदी के दौरान नहीं होते हैं।

मुद्रा संकट के उदाहरण

डॉ. विपिन कुमार

भारत अगले साल जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी और अध्यक्षता करेगा। इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो मुद्रा संकट के उदाहरण कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जी-20 सम्मेलन के लोगो, थीम और वेबसाइट का अनावरण कर दिया है। जी-20 अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समन्वय के सबसे बड़े एवं प्रतिष्ठित मंचों में से एक है। इसके सदस्य देशों में संपूर्ण विश्व की दो तिहाई जनसंख्या समाहित है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं देशों से आता है। ये देश पूरे विश्व के 75 प्रतिशत व्यापार का प्रतिनिधित्व करते हैं और अब जब भारत इस समूह की अगुवाई करने जा रहा है । ऐसे में यह प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व और स्वाभिमान का विषय है। यह वास्तव में आजादी के अमृतकाल में हमारी प्रतिबद्धता को नई मजबूती प्रदान करेगा।

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