रणनीति विकास

तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत

तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत
7. At times a ‘line’ can substitute for the secondary trend. A line in DT parlance is a sidewise movement which lasts for two or three weeks, may be for as many months, and in the course of its formation, prices fluctuate within a range of 5% or less of their mean figures.

Fund vs Tech

फोरेंसिक ट्रैक

डिजिटल फोरेंसिक स्पेशलिस्ट का मुख्य काम डिजिटल उपकरणों में पाई जाने वाली सामग्री की रिकवरी और जांच करना है। डिजिटल फोरेंसिक विशेषज्ञ के पास तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत एक तकनीकी पृष्ठभूमि है और डिजिटल सबूतों की पहचान और संग्रह में कंप्यूटर फोरेंसिक सिद्धांतों के ज्ञान को लागू करने में सक्षम होना चाहिए।

डिजिटल फोरेंसिक स्पेशलिस्ट का मुख्य काम डिजिटल उपकरणों में पाई जाने वाली सामग्री की रिकवरी और जांच करना है। डिजिटल फोरेंसिक विशेषज्ञ के पास एक तकनीकी पृष्ठभूमि है और डिजिटल सबूतों की पहचान और संग्रह में कंप्यूटर फोरेंसिक सिद्धांतों के ज्ञान को लागू करने में सक्षम होना चाहिए।

फोरेंसिक ट्रैक: बेसिक कोर्स

डिजिटल फोरेंसिक अधिकारी के पास डिजिटल साक्ष्यों की पहचान और संग्रह के लिए कंप्यूटर फोरेंसिक सिद्धांतों की तकनीकी पृष्ठभूमि और व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए।

डिजिटल फोरेंसिक ट्रैक के लिए बुनियादी स्तर का पाठ्यक्रम कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निम्नलिखित विषयों की समझ हासिल करने में मदद करेगाः

  1. विभिन्न प्रकार के साइबर अपराध।
  2. डिजिटल साक्ष्य और डिजिटल साक्ष्य का विश्लेषण।
  3. डिजिटल साक्ष्यों की अखंडता, अदालत में डिजिटल साक्ष्यों की स्वीकार्यता और चेन ऑफ़ कस्टडी को बनाए रखने के लिए सरंक्षण।
  4. विभिन्न ऑपरेटिंग सिस्टम, ऍप्लिकेशन्स और फ़ाइल स्ट्रक्चर से परिचय।
  5. डिजिटल फोरेंसिक और डिजिटल फोरेंसिक के विभिन्न चरण हैं - पहचान, संरक्षण, अधिग्रहण, प्रमाणीकरण और प्रलेखन और आई पी ए ए डी।
  6. भारतीय संदर्भ मेंडिजिटल फोरेंसिक प्रक्रिया के लिए मानक संचालन प्रक्रिया।
  7. दस्तावेज़ीकरण का महत्व और डिजिटल साक्ष्य के साथ प्रस्तुत किए जाने वाले दस्तावेज़।
  8. कमर्शियल एवं ओपन सोर्स डिजिटल फोरेंसिक उपकरण जैसे एनकेस, एफ टी के इमेजर आदि का ज्ञान।
  9. उपकरण प्रदर्शन और सिमुलेशन के माध्यम से वोलेटाइल एवं नॉन-वोलेटाइल डिजिटल साक्ष्य के अधिग्रहण के लिए एफ टी के इमेजर का उपयोग।
  10. साक्ष्य के विश्लेषण के लिए एनकेस का उपयोग।

फोरेंसिक ट्रैक: इंटरमीडिएट कोर्स

डिजिटल फोरेंसिक डोमेन में कंप्यूटर, स्मार्ट फोन, फीचर फोन, सैटेलाइट फोन, राउटर और स्विच जैसे नेटवर्किंग डिवाइस, डिजिटल कैमरा, सीसीटीवी सिस्टम, जीपीएस और अन्य संबंधित उपकरणों जैसे विभिन्न डिजिटल उपकरणों से फोरेंसिक अधिग्रहण, विश्लेषण और डिजिटल कलाकृतियों की रिपोर्टिंग शामिल है। . डिजिटल उपकरण प्रकृति में अस्थिर हो सकते हैं और इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि विशेषज्ञों को अस्थिर डेटा एकत्र करने के विभिन्न तरीकों को जानना चाहिए। ओईएम और निर्माता द्वारा उपयोग किए जाने वाले विभिन्न ऑपरेटिंग सिस्टम के कारण अग्रणी ऑपरेटिंग सिस्टम आधारित फोरेंसिक तकनीकों को कवर करना महत्वपूर्ण है।

इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को डिजिटल फोरेंसिक से संबंधित निम्नलिखित विषयों का मध्यवर्ती स्तर का ज्ञान प्राप्त करना है: -

    1. डिजिटल फोरेंसिक के संबंध में कानूनी और अधिकार क्षेत्र के मुद्दों सहित साइबर अपराध जागरूकता विकसित करना।
    2. विभिन्न उपकरणों के अवलोकन सहित लैपटॉप, सर्वर और मोबाइल फोन के लिए लाइव डेटा / ट्राइएजिंग फोरेंसिक को समझें।
    3. ट्राइएज टूल्स का उपयोग करके रैंडम एक्सेस मेमोरी (रैम) विश्लेषण को समझें।
    4. रजिस्ट्री, डेटा छिपाने के स्थान, इवेंट लॉग और फोरेंसिक छवि विश्लेषण सहित विंडोज फोरेंसिक में अंतर्दृष्टि।
    5. फाइलसिस्टम फोरेंसिक सहित लिनक्स और मैक फोरेंसिक का अवलोकन।
    6. विभिन्न प्लेटफार्मों, उपकरणों, सिम कार्ड डेटा निष्कर्षण और लाइव मोबाइल अधिग्रहण सहित मोबाइल फोरेंसिक को समझना।
    7. प्रोटोकॉल विश्लेषण, परतवार विश्लेषण, तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत प्रवाह विश्लेषण और वायरलेस विश्लेषण सहित नेटवर्क फोरेंसिक को समझना।
    8. स्थिर, गतिशील, कोड और व्यवहार विश्लेषण का उपयोग करके मैलवेयर विश्लेषण और रिवर्स इंजीनियरिंग।
    9. वर्चुअल मशीन और वीएम फोरेंसिक का परिचय।
    10. कानूनी पहलुओं सहित क्लाउड फोरेंसिक का अवलोकन।
    11. स्मार्ट वॉच, रास्पबेरी पाई और अरुडिनो फोरेंसिक सहित इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) फोरेंसिक।
    12. एन्क्रिप्टेड साक्ष्य और एसओपी को संभालना।
    13. टीओआर ब्राउज़र की कलाकृतियों का संग्रह।

    टेक्निकल या फंडामेंटल विश्लेषण, दोनों में किस पर करें भरोसा?

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    यह बताना मुश्किल है कि दोनों में से कौन तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत बेहतर है. सफल निवेशकों दोनों ही विश्लेषणों का प्रयोग करते हैं.

    1. फंडामेंटल विश्लेषण क्या है?
    किसी शेयर के संभावित भविष्य का आंकलन कई व्यापक संकेतों के आधार पर किया जाता है. इसमें देश का जीडीपी, महंगाई दर, ब्याज दर के साथ-साथ कंपनी की बिक्री, मुनाफा क्षमता, रिटर्न ऑन इक्विटी, नकद स्थिति और लाइबिलिटी शामिल होते हैं.

    2. क्या है तकनीकी विश्लेषण?
    तकनीकी विश्लेषण में बाजार के एतिहासिक आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव, वॉल्यूम, ओपन इंट्रेस्ट आदि शामिल हैं. इसके आधार पर यह बताया जाता है कि भविष्य में शेयर की दिशा क्या होगी.

    Dow Theory of Technical Analysis | Markets | Portfolio Management

    In this article we will discuss about:- 1. Introduction to the Dow Theory of Technical Analysis 2. Basic Tenets of Dow Theory 3. Defects.

    According to Charles Dow “the market is always considered as having three movements, all going at the same time. The first is the narrow movement from day-to-day. The second is the short swing, running from two weeks to a month or more; and the third is the main movement, covering at least four years in its duration.”

    The theory advocates that stock price behaviour is 90% psychological and 10% logical. It is the mood of the crowd which determines the way in which prices move and the move can be gauged by analyzing the price movement and volume of transactions.

    Basic Tenets of Dow Theory:

    The basic tenets of the Dow Theory (DT) are few and simple and are:

    1. The averages (index numbers) discount everything except ‘acts of god’ because they reflect the combined market activities of thousands of investors and traders.

    2. The ‘market’ meaning the price of shares in general, swings in trends which may be major or primary, secondary and minor. The primary trends are the extensive up or down movements which generally last by 20% or more. Movements in the direction of the primary trend are interrupted at intervals by secondary swings, in the opposite direction. Finally, the secondary trends are composed of minor trends or day-to-day fluctuations which are unimportant.

    3. So long as each successive rally or price advance reaches a higher level than the one before it, and each secondary reaction, or price decline, stops at a higher level than the previous one, the primary trend is up. This is called a ‘bull market’.

    Dow Theory’s Defects:

    Those who are serious of applying the DT to interpret the market would do well to note its following defects:

    1. First, the DT provides a signal of change in the trend, often too late. The end of a bull market is signaled only when the nearest intermediate bottom is penetrated by more than 3 per cent of the level and the subsequent rally fails to carry prices or the index above the earlier top.

    This deprives the trader of the chance of selling at the best level and enables him to capture “at best about 65% or not much more than half of the total move”. But then, there is no other way of forecasting that the change of trend has taken place at the top and it is better to be late than to be wrong.

    2. The second defect is that the DT is not infallible. It depends on interpretation and is subject to all the hazards of human interpretative ability. It is also criticized for leaving the analyst in doubt. But often, this is because of the reluctance or inability of the analyst to reconcile the DT’s message with his own ideas, derived from other sources, of what the market should do. Experience has shown that the DT is usually more nearly right and ‘the fault lies with the chartist and not the chart’.

    तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत

    बोलिंगर बैंड तकनीकी नजरिये से सौदे करने का एक औजार है, जिसे जॉन बोलिंगर ने 1980 की शुरुआत में बनाया था।

    बोलिंगर बैंड एक संकेतक है, जिससे निवेशक एक खास समय के दौरान उतार-चढ़ाव और कीमतों के स्तर की तुलना कर सकते हैं। यह मूविंग एवरेज यानी चर औसत के इस्तेमाल से बना उन्नत औजार है।
    मूविंग एवरेज की अपनी सीमाएँ हैं। बोलिंगर बैंड इनके साथ-साथ शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव के पहलू को भी शामिल करके इन सीमाओं का समाधान करता है। किसी मूविंग एवरेज के ऊपर या नीचे एक निश्चित प्रतिशत तय करने के बजाय बोलिंगर बैंड की गणना बंद भावों के आधार पर किसी मूविंग एवरेज के ऊपर और नीचे मानक विचलन (स्टैंडर्ड डेविएशन) के आधार पर की जाती है। इन्हें इस सिद्धांत के आधार पर बनाया गया है कि जब उतार-चढ़ाव कम होता है तो बोलिंगर बैंड संकरे होते हैं और जब उतार-चढ़ाव ज्यादा होने पर वे फैल जाते हैं। इसके विभिन्न स्तरों की गणना का सूत्र यह है -
    2 मध्यम बैंड = 20 दिनों का मूविंग एवरेज
    2 ऊपरी बैंड = मध्यम बैंड + 2 मानक विचलन
    2 निचला बैंड = मध्यम बैंड - 2 मानक विचलन
    माना जाता है कि 20 दिनों का मूविंग एवरेज छोटी अवधि में महत्वपूर्ण समर्थन या बाधा स्तर का काम करता है। इसलिए हमने 20 दिनों के मूविंग एवरेज को आधार के तौर पर इस्तेमाल किया है। बहुत-से विश्लेषक अपनी पसंद के आधार पर 10, 14 या 26 दिन वगैरह के मूविंग एवरेज को पैमाना बनाते हैं।
    मानक विचलन बाजार के उतार-चढ़ाव का अच्छा संकेत देते हैं। मानक विचलन के इस्तेमाल से सुनिश्चित होता है कि इन बैंड यानी धारियों में कीमतों में बदलाव के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया होगी। साथ ही इनसे उतार-चढ़ाव ज्यादा और कम होने की अवधि का पता चल सकेगा। कीमतें तेजी से ऊपर या नीचे होने पर उतार-चढ़ाव बढऩे से ये बैंड ज्यादा चौड़े होंगे।
    जब बैंड संकरे हो जाते हैं तो कीमतों में आगे तेज बदलाव आने की प्रवृत्ति बनती है। इसे दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि जब कीमतें एक छोटे दायरे में रहती हैं और उतार-चढ़ाव कम रहता है तो माँग और आपूर्ति में एक अच्छा संतुलन रहता है।
    बैंड का संकुचन हमेशा हाल के बीते समय की चाल के संदर्भ में होता है। इसीलिए बोलिंगर बैंड इस संकुचन प्रक्रिया को साफ तौर पर देखने में मदद करते हैं। इनसे हमें यह भी संकेत मिलता है कि नयी चाल (ब्रेकआउट) कब आ सकती है, क्योंकि नयी चाल किसी भी दिशा में बढऩे पर वे फैलने लगते हैं।
    अगर कीमत ऊपरी बैंड या धारी के ऊपर चलने लगती है तो यह तब तक मजबूती का संकेत होता है, जब तक कि वह तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत मध्यम बैंड के नीचे बंद न हो। इसका मतलब यह है कि अगर कीमत बीच की मूविंग एवरेज रेखा के ऊपर बनी हुई है और कई बार ऊपरी बैंड को भी पार कर चुकी हैं तो इसे लगातार तेजी के रुझान का संकेत माना जा सकता है। कारोबारी मध्यम बैंड के नीचे घाटा काटने का स्तर तय करके सौदे बनाये रख सकते हैं। निचले बैंड के मामले में इसका उलटा होता है। अगर शेयर निचले बैंड से टकरा रहा है और मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने में नाकाम रहता है तो यह उस शेयर में कमजोरी जारी रहने का संकेत हैं। ऐसे में वह शेयर मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने तक बिकवाली सौदों में बना रहा जा सकता है।
    जब कीमतें बैंड के बाहर चली जाती हैं तो माना जाता है कि वही रुझान जारी है। अगर कीमत ऊपरी बैंड से नीचे आने लगती है और निचले बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी नीचे बंद होती है तो रुझान पलट सकता है। दूसरी ओर अगर भाव निचले बैंड से चढऩा शुरू करे और ऊपरी बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी ऊपर बंद हो तो इसे गिरावट का रुझान पलटना कह सकते हैं।
    अलग-अलग विश्लेषक अपने विश्लेषण को सही साबित करने के लिए अलग-अलग मानदंडों और तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में निवेशकों को मेरी सलाह है कि वे अपनी रणनीति के मुताबिक बाजार में सौदे करने से पहले उनका कागज पर परीक्षण कर लें। मतलब यह कि कुछ समय तक उसी रणनीति के आधार वास्तविक सौदे करने के बदले काल्पनिक सौदे करके कागज पर लिखते रहें और अंत में देखें कि क्या परिणाम आ रहा है।
    (निवेश मंथन, अगस्त 2013)

    तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत

    बोलिंगर बैंड तकनीकी नजरिये से सौदे करने का एक औजार है, जिसे जॉन बोलिंगर ने 1980 की शुरुआत में बनाया था।

    बोलिंगर बैंड एक संकेतक है, जिससे निवेशक एक खास समय के दौरान उतार-चढ़ाव और कीमतों के स्तर की तुलना कर सकते हैं। यह मूविंग एवरेज यानी चर औसत के इस्तेमाल से बना उन्नत औजार है।
    मूविंग एवरेज की अपनी सीमाएँ हैं। बोलिंगर बैंड इनके साथ-साथ शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव के पहलू को भी शामिल करके इन सीमाओं का समाधान करता है। किसी मूविंग एवरेज के ऊपर या नीचे एक निश्चित प्रतिशत तय करने के बजाय बोलिंगर बैंड की गणना बंद भावों के आधार पर किसी मूविंग एवरेज के ऊपर और नीचे मानक विचलन (स्टैंडर्ड डेविएशन) के आधार पर की जाती है। इन्हें इस सिद्धांत के आधार पर बनाया गया है कि जब उतार-चढ़ाव कम होता है तो बोलिंगर बैंड संकरे होते हैं और जब उतार-चढ़ाव ज्यादा होने पर वे फैल जाते हैं। इसके विभिन्न स्तरों की गणना का सूत्र यह है -
    2 मध्यम बैंड = 20 दिनों का मूविंग एवरेज
    2 ऊपरी बैंड = मध्यम बैंड + 2 मानक विचलन
    2 निचला बैंड = मध्यम बैंड - 2 मानक विचलन
    माना जाता है कि 20 दिनों का मूविंग एवरेज छोटी अवधि में महत्वपूर्ण समर्थन या बाधा स्तर का काम करता है। इसलिए हमने 20 दिनों के मूविंग एवरेज को आधार के तौर पर इस्तेमाल किया है। बहुत-से विश्लेषक अपनी पसंद के आधार पर 10, 14 या 26 दिन वगैरह के मूविंग एवरेज को पैमाना बनाते हैं।
    मानक विचलन बाजार के उतार-चढ़ाव का अच्छा संकेत देते हैं। मानक विचलन के इस्तेमाल से सुनिश्चित होता है कि इन बैंड यानी धारियों में कीमतों में बदलाव के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया होगी। साथ ही इनसे उतार-चढ़ाव ज्यादा और कम होने की अवधि का पता चल सकेगा। कीमतें तेजी से ऊपर या नीचे होने पर उतार-चढ़ाव बढऩे से ये बैंड ज्यादा चौड़े होंगे।
    जब बैंड संकरे हो जाते हैं तो कीमतों में आगे तेज बदलाव आने की प्रवृत्ति बनती है। इसे दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि जब कीमतें एक छोटे दायरे तकनीकी विश्लेषण सिद्धांत में रहती हैं और उतार-चढ़ाव कम रहता है तो माँग और आपूर्ति में एक अच्छा संतुलन रहता है।
    बैंड का संकुचन हमेशा हाल के बीते समय की चाल के संदर्भ में होता है। इसीलिए बोलिंगर बैंड इस संकुचन प्रक्रिया को साफ तौर पर देखने में मदद करते हैं। इनसे हमें यह भी संकेत मिलता है कि नयी चाल (ब्रेकआउट) कब आ सकती है, क्योंकि नयी चाल किसी भी दिशा में बढऩे पर वे फैलने लगते हैं।
    अगर कीमत ऊपरी बैंड या धारी के ऊपर चलने लगती है तो यह तब तक मजबूती का संकेत होता है, जब तक कि वह मध्यम बैंड के नीचे बंद न हो। इसका मतलब यह है कि अगर कीमत बीच की मूविंग एवरेज रेखा के ऊपर बनी हुई है और कई बार ऊपरी बैंड को भी पार कर चुकी हैं तो इसे लगातार तेजी के रुझान का संकेत माना जा सकता है। कारोबारी मध्यम बैंड के नीचे घाटा काटने का स्तर तय करके सौदे बनाये रख सकते हैं। निचले बैंड के मामले में इसका उलटा होता है। अगर शेयर निचले बैंड से टकरा रहा है और मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने में नाकाम रहता है तो यह उस शेयर में कमजोरी जारी रहने का संकेत हैं। ऐसे में वह शेयर मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने तक बिकवाली सौदों में बना रहा जा सकता है।
    जब कीमतें बैंड के बाहर चली जाती हैं तो माना जाता है कि वही रुझान जारी है। अगर कीमत ऊपरी बैंड से नीचे आने लगती है और निचले बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी नीचे बंद होती है तो रुझान पलट सकता है। दूसरी ओर अगर भाव निचले बैंड से चढऩा शुरू करे और ऊपरी बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी ऊपर बंद हो तो इसे गिरावट का रुझान पलटना कह सकते हैं।
    अलग-अलग विश्लेषक अपने विश्लेषण को सही साबित करने के लिए अलग-अलग मानदंडों और तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में निवेशकों को मेरी सलाह है कि वे अपनी रणनीति के मुताबिक बाजार में सौदे करने से पहले उनका कागज पर परीक्षण कर लें। मतलब यह कि कुछ समय तक उसी रणनीति के आधार वास्तविक सौदे करने के बदले काल्पनिक सौदे करके कागज पर लिखते रहें और अंत में देखें कि क्या परिणाम आ रहा है।
    (निवेश मंथन, अगस्त 2013)

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