क्रिप्टोकरेंसी इन इंडिया

तकनीकी विश्लेषण का आधार

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वितरण कंपनियों का तकनीकी-वाणिज्यिक नुकसान 2021-22 में घटकर 17 प्रतिशत पर

नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) सरकार के वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की स्थिति में सुधार के लिये उठाये गये कदमों का असर दिखने लगा है। डिस्कॉम का कुल तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान 2021-22 में घटकर 17 प्रतिशत पर आ गया जो इससे बीते वित्त वर्ष में 22 प्रतिशत था।

बिजली मंत्रालय ने सोमवार को एक बयान में यह जानकारी दी।
कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटी एंड सी) नुकसान में कमी से वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार होता है। इससे वे वितरण प्रणाली का रखरखाव बेहतर तरीके से कर सकती हैं और जरूरत के अनुसार तथा उपभोक्ताओं के लाभ में बिजली खरीद कर सकती हैं।

बयान के अनुसार, एटीएंडसी नुकसान में कमी से आपूर्ति की औसत लागत (एसीएस) और हासिल होने लायक औसत राजस्व (एआरआर) के बीच अंतर कम हुआ है। सब्सिडी प्राप्ति के आधार पर एसीएस-एआरआर के बीच अंतर 2020-21 में 69 पैसे प्रति किलोवॉट था जो 2021-22 में कम होकर 22 पैसे किलोवॉट हो गया। इसमें नियामकीय आय और उदय योजना के तहत अनुदान शामिल नहीं है।

कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) नुकसान और औसत आपूर्ति लागत-प्राप्त होने वाली औसत आय, वितरण कंपनियों के प्रदर्शन का प्रमुख संकेतक है।
बयान के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 के लिये 56 वितरण कंपनियों के आंकड़ों के प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है कि एटीएंडसी नुकसान 2021-22 में उल्लेखनीय रूप से घटकर 17 प्रतिशत पर आ गया जो 2020-21 में 22 प्रतिशत था। इन वितरण कंपनियों का ऊर्जा (इनपुट एनर्जी) में योगदान 96 प्रतिशत था।
बिजली मंत्रालय ने वितरण कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार के लिये कई कदम उठाये हैं।

मंत्रालय ने चार सितंबर, 2021 को पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) और आरईसी लिमिटेड के लिये मानदंडों को संशोधित किया था। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि घाटे में चल रही डिस्कॉम दोनों कंपनियों से तब तक वित्तपोषण प्राप्त नहीं कर पाएंगी जब तक कि वे निश्चित समयसीमा में घाटा कम करने के लिये कार्ययोजना नहीं बनाती हैं और इसके लिये अपने संबंधित राज्य सरकारों से प्रतिबद्धता हासिल नहीं करती हैं।

मंत्रालय ने यह भी निर्णय किया कि वितरण व्यवस्था को मजबूत करने के लिये किसी भी योजना के तहत भविष्य में कोई भी सहायता घाटे में चल रही डिस्कॉम को तभी उपलब्ध होगी जब वह अपने कुल तकनीकी विश्लेषण का आधार तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान / एसीएस-एआरआर अंतर को एक निश्चित समयसीमा के भीतर निर्धारित स्तर तक लाने का प्रयास करती हैं।

संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया कि कोष तभी उपलब्ध होगा जब डिस्कॉम घाटे में कमी लाने को लेकर प्रतिबद्धता जताए और जरूरी कदम उठाए। इसके अलावा, मंत्रालय ने नुकसान कम करने के उपाय करने के लिये आरडीएसएस के तहत आवश्यक वित्त प्रदान करने को लेकर वितरण कंपनियों के साथ काम किया है।

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नीतू मुकुल का कॉलम: स्त्री के आगे हर बार सीमा रेखा क्यों खींच दी जाती है?

नीतू मुकुल, युवा साहित्यकार - Dainik Bhaskar

आधुनिकता के इस उजास में हम स्त्री की आजादी से जुड़े विभिन्न तकनीकी प्रयोग करके देख चुके हैं कि स्त्री न पहले से कोई खास संतुष्ट है न प्रसन्न। स्त्री की सच्ची स्वतंत्रता का अर्थ लैंगिक आधार पर उसके संवेगों और इच्छाओं पर किसी किस्म का भेदभाव न होना है। जिस तरह लड़के के आगे कोई सीमा रेखा नहीं है वैसे ही लड़की के आगे भी यह सीमा रेखा नहीं होनी चाहिए।

इसी तारतम्य में वैश्विक रूप में, विशेषकर चीन व ईरान में एक अलग तरह का परिवर्तन देखने को मिल रहा है। कहीं ये परिवर्तन लोकल से ग्लोबल होने की तरफ तो नहीं है? ईरान में हिजाब मामले में एक युवती की मौत से बवाल मच जाता है, महिलाएं भड़क जाती हैं। अपना विरोध दर्ज करती हैं। वे कहती हैं हम अपने बालों को नहीं छुपाएँंगी तो ना ही स्कूल जा सकेंगी, ना ही नौकरी पा सकेंगी।

शायद बड़ी संख्या में छात्राएं भी इसीलिए इस विरोध में शामिल हुईं और वह अपने बाल कटवाकर विरोध जाहिर कर रही हैं। कुछ विरोधाभास भी हैं। आज आधुनिक स्त्री की विचारधारा का स्तर जिन वैचारिक क्रांतिकारिता को लेकर है वह प्रायः विकासशील तथा अल्पविकसित पारंपरिक देशों की वैचारिकी में घुल नहीं पाता।

दरअसल आधुनिक स्त्री, स्त्रियों को तो संबोधित करती है परंतु संपूर्ण विश्व या विभिन्न समाजों-समुदायों की स्त्रियों को संबोधित नहीं कर पाती। भारत तकनीकी विश्लेषण का आधार में जब स्त्रियों के तलाक और उत्तराधिकार जैसे बुनियादी अधिकारों पर बवाल हो रहे थे उस समय पश्चिम में स्त्रियों के सशक्तीकरण के लिए प्रजनन की तकनीक बदलने की बात हो रही थी, जब पश्चिम का नारीवाद परिवार, गर्भपात, यौनिकता, बलात्कार, लैंगिक श्रम विभाजन, घरेलू हिंसा और समलैंगिकता जैसे मुद्दों पर विश्लेषण कर रहा था, उस समय भारत में महिलाओं की शिक्षा दर केवल 10% के करीब थी।

भारत में जो नई स्त्री की संकल्पना उभरती है उसमें नई स्त्री का विमर्श मूलतः मध्यमवर्गीय शहरी एवं अभिजात स्त्रियों का विमर्श बनकर रह गया। अब बात चीन में चल रहे ट्रेंड की करते हैं। लगभग 27 वर्ष की या इससे अधिक अविवाहित व कामकाजी महिलाओं को चीन में सरकार द्वारा बची हुई महिला के रूप में लेबल किया जाता है। एक उच्च पद पर काम करते हुए, वह इस बात को लेकर परेशान है कि कल वह तीस की हो जाएगी। वह डरती है, परेशान है क्यों? क्योंकि वह अभी सिंगल है। उस पर शादी करने का दबाव है।

इन दिनों चीन में उसके जैसी एकल शहरी शिक्षित व कामकाजी महिलाओं को ‘शेंग-नु’ या बची हुई महिला कहा जाता है। वह करीबियों के बीच दबाव महसूस करती है और यह संदेश चीन के सरकारी मीडिया द्वारा अंकित किया जाता है। सरकारी मीडिया ने 2008 में ‘शेंग-नु’ शब्द का उपयोग करना शुरू किया था। चीन की जनगणना बताती है कि 25 से 29 की आयु की पांच में से एक महिला अविवाहित है।

चीन में स्थानीय सरकारों ने मैच मेकिंग के कार्यक्रम आयोजित किए हैं। लक्ष्य न केवल जीन-पूल में सुधार करना है बल्कि जहां तक संभव हो सके एकल पुरुषों की संख्या को कम करना है। चीन में बची हुई महिलाओं का सामाजिक मुद्दा एक राष्ट्रीय बहस में बदल गया है। यही चीन के लिंग-अनुपात में असंतुलन का परिणाम है, क्योंकि कुछ का मानना है, बची हुई महिलाएं उच्च, योग्य व बुद्धिजीवी वर्ग की हैं।

यदि ये विवाह नहीं करेंगी तो परिणाम स्वरूप जनसंख्या की गुणवत्ता में कमी आएगी। आर्थिक स्थिति, सरकार का दबाव, यहां तक कि वैश्वीकरण और शेंग-नु, सूक्ष्म और व्यापक हैं। एकल होना महिलाओं द्वारा चुना हुआ विकल्प है। विकल्प अक्सर जीवन से बहुत प्रभावित होते हैं। पूर्व में एक स्वतन्त्र नारी का जो सपना देखा गया था आज के नारी मुक्ति आन्दोलन से इतना अलग क्यों है? सोचने की जरूरत है।

Delhi News: दिल्ली के तिलक नगर में लिव-इन पार्टनर की हत्या, पंजाब से पकड़ा गया आरोपी, इस बात को लेकर हुआ था झगड़ा

Delhi News: राष्ट्रीय राजधानी के तिलक नगर इलाके में अपने लिव-इन पार्टनर की हत्या करने वाले एक व्यक्ति को शुक्रवार को पंजाब के पटियाला से गिरफ्तार किया गया. आरोपी रेखा रानी की हत्या के मामले में वांछित था.

Delhi News: राष्ट्रीय राजधानी के तिलक नगर इलाके में अपने लिव-इन पार्टनर की हत्या करने वाले एक व्यक्ति को शुक्रवार को पंजाब के पटियाला से गिरफ्तार किया गया. आरोपी रेखा रानी की हत्या के मामले में वांछित था. इस संबंध में 1 दिसंबर 2022 को थाना तिलक नगर में आईपीसी की धारा 302/201 के तहत मामला दर्ज किया गया था. पुलिस के मुताबिक, आरोपी उसकी हत्या करने के बाद पंजाब भाग गया. वह अपनी गिरफ्तारी से बच रहा था.

इसके बाद पुलिस ने सर्विलांस की मदद से आरोपी का पता लगाने का प्रयास किया गया, आरोपी को पंजाब में ढूंढ लिया गया. आरोपी की कार को टोल नाके से ट्रैक किया गया और आरोपी को पंजाब में उसके पैतृक गांव से गिरफ्तार किया गया. आरोपी को सीआरपीसी की धारा 41.1 (डी) के तहत गिरफ्तार किया गया है. वह पहले भी सात जघन्य मामलों में शामिल है जिनमें फिरौती के लिए अपहरण, हत्या का प्रयास, आर्म्स एक्ट आदि शामिल हैं.

बेटी के बयान पर केस दर्ज

मामला तिलक नगर दिल्ली के गणेश नगर निवासी रेखा रानी की बेटी के बयान पर दर्ज किया गया था. दिल्ली पुलिस के मुताबिक उसने बताया कि वह गुरु हरकिशन पब्लिक स्कूल, फतेह नगर, दिल्ली में 10वीं कक्षा की छात्रा है. वह अपने घर पर अपनी मां और चाचा मनप्रीत के साथ रहती है. उनका माइग्रेन का इलाज चल रहा है. 1 दिसंबर को जब वह सुबह 6 बजे उठी तो उसके चाचा मनप्रीत ने उसे गोलियां दीं और सोने को कहा. जब उसे शक हुआ तो उसने मनप्रीत से मां का पता पूछा.

पैसों को लेकर चल रहा था झगड़ा

उसने बताया कि वह बाजार गई थी. उसने इस घटना के बारे में अपने चचेरे भाई को फोन किया और तकनीकी विश्लेषण का आधार पश्चिम विहार में अपने चचेरे भाई के घर चली गई. उन्होंने मदद के लिए पुलिस को फोन किया और अपने गणेश नगर स्थित घर को बंद पाया. उसने आगे कहा कि मनप्रीत और उसकी मां के बीच कुछ समय से पैसों को लेकर झगड़ा चल रहा था. उसे शक है कि मनप्रीत ने उसकी मां को नुकसान पहुंचाया है. पुलिस ने घर का दरवाजा खोला और उसकी मां को मृत पाया.

स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची और पाया कि रेखा के शरीर पर उसके चेहरे और गर्दन पर कई चोट के निशान थे, उसकी दाहिनी अनामिका कटी हुई थी. स्थानीय सूचना, सीसीटीवी फुटेज, तकनीकी निगरानी, ​​सीडीआर विश्लेषण के आधार पर क्राइम ब्रांच ने आरोपी मनप्रीत को पकड़ने के लिए काम शुरू कर दिया है. उसे ट्रैक करने के लिए गुप्त मुखबिरों को लगाया गया. आरोपी बार-बार अपना पता और ठिकाना बदल रहा था. हालांकि सर्विलांस की मदद से आरोपी का पता लगाया गया और उसे पकड़ा गया।

नीतू मुकुल का कॉलम: स्त्री के आगे हर बार सीमा रेखा क्यों खींच दी जाती है?

नीतू मुकुल, युवा साहित्यकार - Dainik Bhaskar

आधुनिकता के इस उजास में हम स्त्री की आजादी से जुड़े विभिन्न तकनीकी प्रयोग करके देख चुके हैं कि स्त्री न पहले से कोई खास संतुष्ट है न प्रसन्न। स्त्री की सच्ची स्वतंत्रता का अर्थ लैंगिक आधार पर उसके संवेगों और इच्छाओं पर किसी किस्म का भेदभाव न होना है। जिस तरह लड़के के आगे कोई सीमा रेखा नहीं है वैसे ही लड़की के आगे भी यह सीमा रेखा नहीं होनी चाहिए।

इसी तारतम्य में वैश्विक रूप में, विशेषकर चीन व ईरान में एक अलग तरह का परिवर्तन देखने को मिल रहा है। कहीं ये परिवर्तन लोकल से ग्लोबल होने की तरफ तो नहीं है? ईरान में हिजाब मामले में एक युवती की मौत से बवाल मच जाता है, महिलाएं भड़क जाती हैं। अपना विरोध दर्ज करती हैं। वे कहती हैं हम अपने बालों को नहीं छुपाएँंगी तो ना ही स्कूल जा सकेंगी, ना ही नौकरी पा सकेंगी।

शायद बड़ी संख्या में छात्राएं भी इसीलिए इस विरोध में शामिल हुईं और वह अपने बाल कटवाकर विरोध जाहिर कर रही हैं। कुछ विरोधाभास भी हैं। आज आधुनिक स्त्री की विचारधारा का स्तर जिन वैचारिक क्रांतिकारिता को लेकर है वह प्रायः विकासशील तथा अल्पविकसित पारंपरिक देशों की वैचारिकी में घुल नहीं पाता।

दरअसल आधुनिक स्त्री, स्त्रियों को तो संबोधित करती है परंतु संपूर्ण विश्व या विभिन्न समाजों-समुदायों की स्त्रियों को संबोधित नहीं कर पाती। भारत में जब स्त्रियों के तलाक और उत्तराधिकार जैसे बुनियादी अधिकारों पर बवाल हो रहे थे उस समय पश्चिम में स्त्रियों के सशक्तीकरण के लिए प्रजनन की तकनीक बदलने की बात हो रही थी, जब पश्चिम का नारीवाद परिवार, गर्भपात, यौनिकता, बलात्कार, लैंगिक श्रम विभाजन, घरेलू हिंसा और समलैंगिकता जैसे मुद्दों पर विश्लेषण कर रहा था, उस समय भारत में महिलाओं की शिक्षा दर केवल 10% के करीब थी।

भारत में जो तकनीकी विश्लेषण का आधार नई स्त्री की संकल्पना उभरती है उसमें नई स्त्री का विमर्श मूलतः मध्यमवर्गीय शहरी एवं अभिजात स्त्रियों का विमर्श बनकर रह गया। अब बात चीन में चल रहे ट्रेंड की करते हैं। लगभग 27 वर्ष की या इससे अधिक अविवाहित व कामकाजी महिलाओं को चीन में सरकार द्वारा बची हुई महिला के रूप में लेबल किया जाता है। एक उच्च पद पर काम करते हुए, वह इस बात को लेकर परेशान है कि कल वह तीस की हो जाएगी। वह डरती है, परेशान है क्यों? क्योंकि वह अभी सिंगल है। उस पर शादी करने का दबाव है।

इन दिनों चीन में उसके जैसी एकल शहरी शिक्षित व कामकाजी महिलाओं को ‘शेंग-नु’ या बची हुई महिला कहा जाता है। वह करीबियों के बीच दबाव महसूस करती है और यह संदेश चीन के सरकारी मीडिया द्वारा अंकित किया जाता है। सरकारी मीडिया ने 2008 में ‘शेंग-नु’ शब्द का उपयोग करना शुरू किया था। चीन की जनगणना बताती है कि 25 से 29 की आयु की पांच में से एक महिला अविवाहित है।

चीन में स्थानीय सरकारों ने मैच मेकिंग के कार्यक्रम आयोजित किए हैं। लक्ष्य न केवल जीन-पूल में सुधार करना है बल्कि जहां तक संभव हो सके एकल पुरुषों की संख्या को कम करना है। चीन में बची हुई महिलाओं का सामाजिक मुद्दा एक राष्ट्रीय बहस में बदल गया है। यही चीन के लिंग-अनुपात में असंतुलन का परिणाम है, क्योंकि कुछ का मानना है, बची हुई महिलाएं उच्च, योग्य व बुद्धिजीवी वर्ग की हैं।

यदि ये विवाह नहीं करेंगी तो परिणाम स्वरूप जनसंख्या की गुणवत्ता में कमी आएगी। आर्थिक स्थिति, सरकार का दबाव, यहां तक कि वैश्वीकरण और शेंग-नु, सूक्ष्म और व्यापक हैं। एकल होना महिलाओं द्वारा चुना हुआ विकल्प है। विकल्प अक्सर जीवन से बहुत प्रभावित होते हैं। पूर्व में एक स्वतन्त्र नारी का जो सपना देखा गया था आज के नारी मुक्ति आन्दोलन से इतना अलग क्यों है? सोचने की जरूरत है।

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