विदेशी मुद्रा विश्लेषण

विश्व बाजार शुल्क और सीमा

विश्व बाजार शुल्क और सीमा

दुबई का बाहरी व्यापार 2020 की पहली तिमाही में एईडी323 बिलियन तक पहुंचा

दुबई, 6 मई, 2020 (डब्ल्यूएएम) -- कोविड-19 के प्रकोप के नकारात्मक प्रभाव से वैश्विक आर्थिक की विपरीत परिस्थितियों के कारण दुबई की अर्थव्यवस्था लचीली बनी हुई है। 2020 की पहली तिमाही में शहर का बाहरी व्यापार एईडी323 बिलियन तक पहुंच गया। पिछले साल की इसी तिमाही की तुलना में निर्यात 2 फीसदी बढ़ा है। दुबई के बाहरी गैर-तेल व्यापार की मात्रा 24 मिलियन टन तक पहुंच गई, जिसमें आयात 16 मिलियन टन और निर्यात 4.2 मिलियन टन है और फिर से निर्यात 3.6 मिलियन टन रहा। दुबई के क्राउन प्रिंस और दुबई कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष हिज हाइनेस शेख हमदान बिन मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने कहा, "वैश्विक कोविड-19 संकट के बीच दुबई ने अपने आर्थिक लचीलेपन का प्रदर्शन किया है। हालांकि दुनिया भर के बाजारों में महामारी ने असर डाला है, लेकिन दुबई का बाहरी व्यापार अपने बाजारों की विविधता और वैश्विक परिवर्तनों, रुझानों और जरूरतों के अनुकूल होने की अपनी क्षमता के कारण अपनी गति को बनाए रखने में सक्षम है। हमारे नेतृत्व ने जो बोया है, हम उसका लाभ उठा रहे हैं। एक प्रारंभिक चरण से हमारे नेतृत्व ने बुनियादी ढांचे और उन्नत प्रौद्योगिकी को विकसित करने में निवेश किया जिसने हमें संकटों के बीच लचीला रहने और अवसरों के लिए चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाया।"

हिज हाइनेस ने कहा, "इस कठिन समय के दौरान व्यवसायों का सहयोग करने के लिए हमने एक प्रोत्साहन पैकेज योजना की घोषणा की, जिसमें 15 मार्च से 30 जून तक दुबई के बाजारों में स्थानीय रूप से बेचे जाने वाले आयातित उत्पादों पर लगाए गए सीमा शुल्क के 20 फीसदी की रिफंड शामिल थी। सीमा शुल्क निकासी गतिविधि करने के लिए एईडी50,000 बैंक गारंटी या नकदी को रद्द करना। मौजूदा सीमा शुल्क निकासी कंपनियों द्वारा भुगतान की गई बैंक गारंटी या नकद रिफंड किया जाएगा।"

2020 की पहली तिमाही में प्रत्यक्ष व्यापार एईडी188 बिलियन तक पहुंच गया, जबकि मुक्त क्षेत्रों से व्यापार एईडी133 बिलियन तक पहुंच गया और सीमा शुल्क गोदाम व्यापार एईडी2 बिलियन तक है। भूमि व्यापार ने एईडी4 बिलियन, समुद्री व्यापार एईडी116 बिलियन और एयर ट्रेड एईडी163 बिलियन का योगदान दिया। सभी बाधाओं के बावजूद और कोविड-19 के प्रकोप के कारण विश्व बाजार के सामने कई चुनौतियों के बावजूद दुबई में सीमा शुल्क लेनदेन 60 फीसदी बढ़कर2020 की पहली तिमाही में 4 मिलियन तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की इसी तिमाही में 2.5 मिलियन था। यह दुबई की अर्थव्यवस्था की लचीलापन और परिवर्तन और चुनौतियों का सामना करने की क्षमता को दर्शाता है। अनुवादः एस कुमार.

विश्व बाजार शुल्क और सीमा

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महामंदी के तीन कारणों की व्याख .

Solution : आर्थिक महामंदी का अर्थ किसी देश की ऐसी आर्थिक दशा से है जब उत्पादन में भारी वृद्धि, लोगों की क्रयशक्ति में तीव्र गिरावट और मुद्रा के वास्तविक मूल्य में कमी आ जाय। ऐसी आर्थिक महामंदी में अमेरिका में आई थी और इसने समस्त विश्व को ग्रास बना लिया, जिसके कारण इसे महामंदी कहा जाता है।
(i) युद्ध द्वारा उत्पन्न स्थितियाँ - प्रथम युद्ध काम में सेना से सम्बंधित वस्तुओं की मांग में वृद्धि के कारण भारी औद्योगिक प्रसार किए गए। युद्ध के बाढ़ उद्योग अपनी सामान्द्य स्थिति में आ गए। सैनिक व युद्ध सम्बन्धी माल की मांग में तीव्र कमी के कारण आर्थिक महामंदी का जन्म हुआ।
(ii) कृषि में अधिक उत्पादन - 1929 की आर्थिक मंडी का कृषि क्षेत्रों तथा समुदायों पर बहुत बुरा असर पड़ा, क्योंकि औद्योगिक उत्पादों की तुलना में खेतिहर उत्पादों की कीमतों में भारी कमी आई और ज्यादा समय तक कमी बानी रही। उत्पादन लागत की तुलना में कीमते घट गयी।
(iii) ऋण की कमी - 1920 के दशक के मध्य में बहुत से देशों ने अमेरिका से ऋण लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी जरूरतों को पूरा किया था। जब स्थिति ठीक थी तो अमेरिका विश्व बाजार शुल्क और सीमा से ऋण जुटाना सरल था लेकिन संकट का संकेत मिलते ही अमेरिका उद्यमियों में खलबली मच गई। 1928 के पूर्वार्द्ध तक विदेशों में अमेरिका का ऋण एक अरब डॉलर था। जो देश अमेरिकी ऋण पर सबसे ज्यादा निर्भर थे, उनके सामने गहरा संकट आ खड़ा हुआ।
(iv) अनेकविध प्रभाव - बाजार से ऋणदाताओं के उठ जाने से अनेकविध प्रभाव सामने आए। यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी हो गए , मुद्रा लुढ़क गई और ब्रिटिश पौंड पाउन्ड भी इस झटके से नहीं बच स्का। लैटिन अमेरिका और अन्य स्थानों पर कृषि विश्व बाजार शुल्क और सीमा व कच्चे माल की कीमतें तेजी से गिरी। अमेरिका सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचने के लिए आयातित पदार्थों पर दोगुना विश्व बाजार शुल्क और सीमा सीमा शुल्क वसूलने लगी जिससे विश्व व्यापार की कमर ही टूट गई।

हीरों और रत्नों पर सीमा शुल्क दोगुना

सरकार ने कटे एवं तराशे हीरों, रंगीन रत्नों और प्रयोगशाला में बनाए गए हीरों पर आयात शुल्क दोगुना कर दिया है। इससे विश्व का सबसे बड़ा हीरा कारोबार केंद्र बनने की भारत की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री ने गुरुवार को रंगीन विश्व बाजार शुल्क और सीमा रत्नों सहित सभी प्रकार के हीरों पर सीमा शुल्क वर्तमान 2.5 फीसदी से बढ़ाकर 5 फीसदी करने की घोषणा की। इसी तरह नकली आभूषणों पर सीमा शुल्क 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया गया। इसके अलावा आयात शुल्क पर 10 फीसदी सामाजिक कल्याण अधिभार लगाया गया है और शिक्षा उपकर वापस लिया गया है। इस तरह आयात शुल्क पर शुद्ध अधिभार सीमा शुल्क का 7 फीसदी होगा।

सीमा शुल्क में बढ़ोतरी से हीरा आभूषण निर्यातकों को उत्पादन लागत और वैश्विक प्रतिस्पर्धी क्षमता के लिहाज से तगड़ा झटका लगेगा। भारतीय सराफों के लिए चीन समेत प्रमुख उत्पादक देशों के सराफों से प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल होगा। इसके अलावा सीमा शुल्क में बढ़ोतरी से भारत के प्रमुख कारोबारी केंद्र बनने की संभावनाएं कमजोर पड़ेंगी। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने भारत को हीरा कारोबार का प्रमुख गढ़ बनाने की योजना विश्व बाजार शुल्क और सीमा बनाई है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाली रत्नाभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने कहा, 'सीमा शुल्क में बढ़ोतरी का भारत के निर्यात पर असर पड़ेगा, जो पिछले कुछ वर्षों से स्थिर बना हुआ है। आम तौर पर विदेशी आयातक कई वजहों से 10 फीसदी आयातित माल वापस लौटाते हैं, जिन पर अब हमें 5 फीसदी शुल्क चुकाना होगा।'

भारत ने अप्रैल से दिसंबर, 2017 के दौरान 1.75 अरब डॉलर के कटे एवं तराशे हीरों का आयात किया, जो उससे पिछले वर्ष की इसी अवधि के आयात 1.99 अरब डॉलर से 12 फीसदी कम है। रीवाशंकर जेम्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रवीण शंकर पंड्या ने कहा, 'भारत विश्व विश्व बाजार शुल्क और सीमा का एकमात्र ऐसा देेश है, जहां कटे एवं तराशे हीरों पर आयात शुल्क लगाया जाता है। बेल्जियम, हॉन्ग-कॉन्ग जैसे हीरा कारोबार के प्रमुख केंद्रों ने कीमती रत्नों पर आयात शुल्क खत्म किया हुआ है। इसलिए शुल्क से भारत का कटे एवं तराशे हीरों का कारोबार बुरी तरह प्रभावित होगा।'

मुंबई में भारत डायमंड बोर्स (बीडीबी) जैसा विश्व स्तरीय कारोबारी केंद्र मौजूद है। सरकार ने इसके जरिये भारत को कटे एवं तराशे हीरों का वैश्विक कारोबारी केंद्र बनाने की योजना बनाई है। सरकार ने डी बीयर्स, रियो टिंटो, अलरोसा जैसी दुनिया की दिग्गज खनिक कंपनियों को भारत में अपने कारोबारी केंद्र शुरू करने के लिए आमंत्रित किया है। सरकार ने तर्क दिया है कि बीडीबी में विश्व स्तरीय कारोबारी सुविधाएं होने से लघु एवं मझोले हीरा तराशकारों को बिना विदेश गए अच्छी गुणवत्ता के हीरे खरीदने में मदद मिलेगी। भारत इस समय दुनियाभर में उत्खनित होने वाले करीब 90 फीसदी हीरों की तराशी करता है।

डब्ल्यूटीओ के नियम तोडऩे को तैयार भारत

भारत ने वर्ष के शुरुआती छह महीनों में आयात शुल्क में कई बार इजाफा किया। अमेरिका और चीन ने इसे संरक्षणवाद बताते हुए इसकी आलोचना भी की लेकिन इसके बावजूद भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का कोई नियम नहीं तोड़ा था। परंतु 4 अगस्त को अमेरिका विश्व बाजार शुल्क और सीमा के खिलाफ नई उच्च आयात शुल्क दरें लागू होने के बाद पहली बार डब्ल्यूटीओ की बाध्य दरों की शर्त टूट जाएगी। कारोबारी विशेषज्ञ और सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्टडीज के प्रमुख अभिजीत दास के मुताबिक इसके साथ ही भारत उन देशों की सूची में शामिल हो जाएगा जिन्होंने डब्ल्यूटीओ के साथ अपनी प्रतिबद्घता तोड़ी।

इसके बाद भारत आधिकारिक तौर पर संरक्षणवाद के लिए आलोचना के घेरे में आ जाएगा। डब्ल्यूटीओ की बाध्यकारी शुल्क दर, सीमा शुल्क की वह दर है जिसकी प्रतिबद्घता कोई देश तरजीही मुल्क के सिद्घांत के तहत अन्य सदस्य देशों को देता है। यह वैश्विक कारोबारी कानून डब्ल्यूटीओ के 164 सदस्य देशों पर लागू होता है। भारत ने इस वर्ष बजट में 43 श्रेणियों की वस्तुओं के मूलभूत सीमा शुल्क में इजाफा किया था। इसमें इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं भी शामिल हैं। उसने 76 वस्त्र उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाया और चीन तथा मलेशिया से आयातित सोलर सेल्स पर बचाव के उपाय के रूप में शुल्क बढ़ाने की घोषणा की।

दास कहते हैं, 'भारत ने अब तक जो भी शुल्क वृद्घि लागू की थी वह बाध्यकारी दरों के सिद्घांत के अनुरूप थी। यह अमेरिका के उलट था जिसने स्टील और एल्युमीनियम पर शुल्क बढ़ाए और चीन और अमेरिका ने जिस तरह एक दूसरे के खिलाफ शुल्क दरों में इजाफा किया।'

दूसरी ओर सबसे अहम कारोबारी कदम रहा है अमेरिका से आने वाली 29 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाना। इनमें कृषि संबंधित वस्तुएं प्रमुख हैं। भारत ने अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमीनियम की शुल्क दरों में इजाफे के प्रतिरोध में यह कदम उठाया। जून में विश्व बाजार शुल्क और सीमा घोषित इस कदम के तहत सेब और बादाम जैसी उच्च मूल्य वाली वस्तुओं का आयात शुल्क बढ़ाया गया। ऐसा करने से 24 करोड़ डॉलर मूल्य का आयात शुल्क बढ़कर दोगुना हो सकता है। व्यापारिक विशेषज्ञों का कहना है कि डॉनल्ड ट्रंप के कदमों के बाद ऐसा होना लाजिमी था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और व्यापारिक विशेषज्ञ विश्वजीत धर कहते हैं, 'भारत ने डब्ल्यूटीओ को बता दिया था कि वह दरें बढ़ाने की योजना बना रहा है। परंतु मौजूदा मानक किसी देश को एक देश के खिलाफ बचाव के उपाय अपनाने की इजाजत नहीं देते जबकि भारत ने ऐसा ही किया है। अमेरिका ने भी बहुपक्षीय व्यवस्था का मान नहीं रखा है लेकिन कुछ अनुचित लगने पर वह उसकी मदद ले सकता है।'

परंतु अन्य लोग भी सतर्क हैं। यह बढ़ोतरी बढ़ते व्यापारिक गतिरोध को और बढ़ाएगी। इससे घरेलू विनिर्माण आकर्षक होगा और सीमा शुल्क में बढ़ोतरी आयात को महंगा बना देगी। डेलॉयट इंडिया के अप्रत्यक्ष कर साझेदार एम एस मणि के मुताबिक कृषि उत्पादों, मसलन दालों पर शुल्क 30 फीसदी से बढ़ाकर 70 फीसदी कर दिया गया। इससे रकबा बढ़ेगा और उपज भी। भारत ने अपने कदमों को अमेरिकी प्रशासन के कदमों का प्रत्युत्तर बताया है। उसे यह भी उम्मीद है कि मामला सहमत से निपट जाएगा।

एक अधिकारी के मुताबिक, 'शुल्क वृद्घि 4 अगस्त से लागू होगी और हमें उम्मीद है कि उसके पहले यह मसला हल हो जाएगा। जून में सहायक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि मार्क लिंस्कॉट की भारत यात्रा के दौरान यह तय किया गया कि दोनों देश उन वस्तुओं की सूची बनाएंगे जिनके बारे में दोनों देशों के नेता घोषणा कर सकते हैं।' फिलहाल भारत के अधिकारियों का एक दल अमेरिका में है और वह एल्युमिनियम शुल्क दर में की गई वृद्घि से रियायत का प्रयास कर रहा है। अगर ऐसा हुआ तो भारत भी आयात शुल्क कम कर सकता है।

वाणिज्य विभाग के एक वरिष्ठï अधिकारी के मुताबिक भारत ने व्यापारिक सुविधाओं के मामले में भी अन्य देशों से कहीं ज्यादा बढ़चढ़कर प्रयास किए हैं। डब्ल्यूटीओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक देशों में भारत ने व्यापार को लेकर 28 सुधारों का क्रियान्वयन किया है। यह चीन के दो सुधारों की तुलना में बहुत अधिक है। परंतु उसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत ने पिछले एक साल में कई ऐसे उपाय अपनाए हैं जिन्हें व्यापक तौर पर कारोबारी दृष्टि से प्रतिबंधात्मक माना जा सकता है। लगभग इसी दौर में अमेरिका और चीन के बीच वैश्विक कारोबारी युद्ध की शुरुआत हुई। अक्टूबर 2017 से मई 2018 के बीच भारत ने टैरिफ में इजाफा किया, सीमा प्रक्रियाओं में कड़ाई की, कर और निर्यात शुल्क आदि लगाए। रिपोर्ट बताती है कि 16 मौकों पर प्रतिबंधात्मक पहल की गई। जबकि अमेरिका और चीन का आंकड़ा दो-दो का रहा।

कहा गया कि इनमें से अधिकांश कदम जरूरी थे क्योंकि व्यापार घाटा बढ़ रहा था। जून में यह 61 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त इजाफा इसकी वजह थी। निकट भविष्य में होने वाला स्वर्ण आयात भी घाटे में इजाफे की वजह बन सकता है। ऐसा तब है जबकि इंजीनियरिंग और औषधि उत्पादों के निर्यात में 17.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इक्रा के प्रमुख अर्थशास्त्री अदिति नायर कहती हैं कि चालू खाते का मौजूदा घाटा 16-17 अरब डालर तक बढ़ सकता है। वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही में यह जीडीपी के 2.5 फीसदी तक हो सकता है।

दूसरी ओर घरेलू उद्योग जगत के विभिन्न क्षेत्रों मसलन इस्पात, वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की शिकायत है कि विदेशी वस्तुएं बाजार में बढ़ रही हैं। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीय के चेयरमैन संजय जैन कहते हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद आयात शुल्क में गिरावट आई थी। इससे सस्ते आयात को बढ़ावा मिला था। वर्ष 2017-18 में आयात 16 फीसदी की दर से बढ़ा। ऐसे में कई वस्त्रों आयात शुल्क का बढऩा राहत की बात है।

नवंबर, 2019 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने 'खादी' के लिए एक अलग हार्मोनाइज्ड सिस्टम (एचएस) कोड आवंटित किया। एचएस कोड किस संगठन ने विकसित किया?

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