विदेशी मुद्रा संकेत

लेकिन शेयर बाजार के कुछ जानकारों की राय है कि डॉलर के हिस्से में आई गिरावट स्थायी है। इसकी एक वजह यह भी है कि डॉलर की कीमत में जारी उतार-चढ़ाव के कारण लोग अब सोना या चांदी में पैसा लगाना ज्यादा सुरक्षित समझ रहे हैं। वेबसाइट आरटी.कॉम के मुताबिक अमेरिकी स्टॉक ब्रोकर पीटर शिफ ने कुछ पहले एक पॉडकास्ट में कहा था कि डॉलर के एकछत्र राज करने के दिन अब लद रहे हैं।
भास्कर एक्सप्लेनर: जीडीपी में गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के उच्चतम स्तर पर, क्या है इसकी वजह और यह देश के लिए कितना फायदेमंद?
देश का विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त के आखिरी हफ्ते में 541.43 बिलियन डॉलर (39.77 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है। एक सप्ताह में इसमें 3.88 बिलियन डॉलर (28.49 हजार करोड़ रुपए) की बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले 21 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 537.548 बिलियन डॉलर (39.49 लाख करोड़ रुपए) था। जून में पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 500 बिलियन डॉलर के आंकड़े को पार करते हुए 501.7 बिलियन डॉलर (36.85 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंचा था। 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 304.22 बिलियन डॉलर (22.34 लाख करोड़ रुपए) था। इस समय पड़ोसी देश चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.165 ट्रिलियन डॉलर के करीब है।
इसलिए बढ़ रहा है विदेशी मुद्रा भंडार
क्या अब लद रहे हैं डॉलर के एकछत्र राज करने के दिन? आईएमएफ ने किया ये खुलासा
पिछले साल विदेशी मुद्रा भंडारों में अमेरिकी डॉलर का हिस्सा 25 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। ये बात अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ताजा आंकड़ों से सामने आई है। गौरतलब है कि डॉलर दुनिया भर में कारोबार की मुख्य मुद्रा है। इसलिए सरकारें अपने विदेशी मुद्रा भंडार में इसकी अधिक से अधिक मात्रा रखने की कोशिश करती हैं।
साल 2020 में विदेशी मुद्रा भंडारों में डॉलर का हिस्सा गिर कर 59 फीसदी रह गया। इसके पहले 1995 में ये विदेशी मुद्रा संकेत हिस्सा 58 फीसदी रहा था। अब आई इस गिरावट का कुछ कारण तो मुद्राओं की कीमत में उतार-चढ़ाव है, लेकिन एक बड़ा कारण विदेशी व्यापार में दूसरी मुद्राओं खास कर चीन के युआन की बढ़ रही भूमिका भी है।
विस्तार
पिछले साल विदेशी मुद्रा भंडारों में अमेरिकी डॉलर का हिस्सा 25 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। ये बात अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ताजा आंकड़ों से सामने आई है। गौरतलब है कि डॉलर दुनिया भर में कारोबार की मुख्य मुद्रा है। इसलिए सरकारें अपने विदेशी मुद्रा भंडार में इसकी अधिक से अधिक मात्रा रखने की कोशिश करती हैं।
साल 2020 में विदेशी मुद्रा भंडारों में डॉलर का हिस्सा गिर कर 59 फीसदी रह गया। इसके पहले 1995 में ये हिस्सा 58 फीसदी रहा था। अब आई इस गिरावट का कुछ कारण तो मुद्राओं की कीमत में उतार-चढ़ाव है, लेकिन एक बड़ा कारण विदेशी व्यापार में दूसरी मुद्राओं खास कर चीन के युआन की बढ़ रही भूमिका भी है।
इसके बावजूद अभी भी दुनिया के अलग-अलग देशों के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा सबसे बड़ा है। पिछले साल की चौथी तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडारों में सात ट्रिलियन डॉलर जमा था। इसके पहले तीसरी तिमाही में ये रकम 6.939 ट्रिलियन डॉलर थी।
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 4.599 अरब डॉलर की गिरावट, अब रह गया 596.458 अरब डॉलर
नई दिल्ली। आर्थिक र्मोचे पर झटका देने वाली खबर है। विदेशी मुद्रा भंडार (country’s foreign exchange reserves) में लगातार दूसरे हफ्ते गिरावट (fall for the second consecutive week) दर्ज हुई है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जून को समाप्त हफ्ते में 4.599 अरब डॉलर ($4.599 billion down) घटकर 596.458 अरब डॉलर (596.458 billion dollars) रह गया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी विदेशी मुद्रा संकेत दी।
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आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार 10 जून को समाप्त हफ्ते में 4.599 अरब डॉलर घटकर 596.458 अरब डॉलर रहा, जबकि 3 जून को समाप्त हफ्ते में यह 30.6 करोड़ डॉलर घटकर 601.057 अरब डॉलर रहा था। हालांकि, इससे पहले 27 मई को समाप्त हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 3.854 अरब डॉलर बढ़कर 601.363 अरब डॉलर पर पहुंच गया था।
रिजर्व बैंक के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार घटने की वजह विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में आई गिरावट है, जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण घटक होता है। इस दौरान विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) 4.535 अरब डॉलर घटकर 532.244 अरब डॉलर रह गई। आंकड़ों के अनुसार आलोच्य हफ्ते में स्वर्ण भंडार का मूल्य भी 10 लाख डॉलर की मामूली गिरावट के साथ 40.842 अरब डॉलर रह गया।
विदेशी मुद्रा संकेत
रिकॉर्ड स्तर पर विदेशी मुद्रा संकेत पहुंचा भारत का विदेशी मुद्रा भंडार
कोरोना संक्रमण काल में जब अर्थव्यवस्था काफी दबाव में है, तब विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर देशवासियों के लिए राहत की खबर आई है।
नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण काल में जब अर्थव्यवस्था काफी दबाव में है, तब विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर देशवासियों के लिए राहत की खबर आई है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 611.895 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। भारत में ये अभी तक विदेशी मुद्रा भंडार का सर्वोच्च स्तर है। इस स्तर तक विदेशी मुद्रा भंडार के पहुंच जाने के साथ ही विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में भारत दुनिया का 5वां सबसे बड़ा देश बन गया है।
RBI क्यों कर रहा डॉलर की रिकॉर्डतोड़ बिक्री, महंगाई से इसका क्या है कनेक्शन?
भारत में लगातार गिरते रुपये (Rupee Falling) और मजबूत होते डॉलर (Dollar) के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने मंगलवार, 17 मई को बताया कि रुपये को मजबूत बनाने के लिए मार्च में 20.1 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा बाजार में बेचे गए हैं. यानि 20 अरब डॉलर.
लेकिन डॉलर बेचने से रुपये को कैसे मजबूती मिलती है, ये समझते हैं.
पहले समझिए रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?
लगातार गिरते रुपये का मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध है जिसके अभी और लंबा चलने की आशंका है. इसके अलावा अमेरिका की फेडरल बैंक जो ब्याज दरें बढ़ा रहा है, उससे ग्लोबल ग्रोथ में सुस्ती आने का डर भी एक वजह बना है. क्रूड आयल की कीमतों में भी उछाल है ही.
इसके अलावा विदेशी निवेशक भारत के बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिसकी वजह से भी डॉलर की डीमांड बढ़ रही है और परिणामस्वरूप रुपया कमजोर हो रहा है.
डॉलर बेचने से कैसे मजबूत हो सकता है रुपया?
केंद्रीय बैंक के पास बैंकिंग सिस्टम पर ध्यान रखने के अलावा महंगाई को नियंत्रण करने या बाजार में लिक्विडिटी मैनेज (करंसी सप्लाय) करने की जिम्मेदारी भी होती है. लिक्विडिटी मैनेजमेंट का मतलब ये है कि बाजार में कितनी नगदी होगी. रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूती देने के लिए आरबीआई स्पॉट मार्केट में डॉलर्स की बिक्री करती है. इस प्रक्रिया को डॉलर-रुपी स्वाप (Dollar-Rupee Swap) कहते हैं. नाम से ही मतलब साफ समझ आ रहा है. बाजार से भारी मात्रा में रुपया वापस लेकर डॉलर की सप्लाय करना.
आरबीआई इस प्रक्रिया के तहत डॉलर को विदेशी मुद्रा संकेत भारतीय स्पॉट मार्केट में बेचता है. स्पॉट मार्केट वो व्यवस्था है जहां फाइनेंशियल इंस्ट्रुमेंट, करंसी को ट्रेड किया जाता है. स्पॉट मार्केट में जो भी ट्रेड होता है उसकी डिलिवरी भी जल्द से जल्द की जाती है. और यहां जिस दिन ट्रेड होता है उस दिन के प्राइस पर सेटलमेंट किया जाता है. RBI ये कदम 2008 में भी उठा चुका है.