कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल

कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल
अहमदाबाद. भारत को समय के साथ चलने का ज्ञान देने वाले मोरबी शहर में अनेक प्रकार की घड़ियां बनती हैं हालांकि मोरबी के लाती प्लाट इलाके में स्थित एक उद्योगपति द्वारा आदिवासी घड़ियां बनाई जाती है. ये घड़ी सामान्य घड़ी से कुछ अलग ही चलती हैं और रिवर्स साइड में चलती हैं, घड़ियों को आदिवासी परिवार बेहद शुभ मानते हैं.
घड़ी उद्योग के एक केंद्र के रूप में मोरबी को न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी जाना जाता है. मोरबी में घर और बाहर की घड़ियों की खरीदारी करने के लिए आएं और विशेष रूप से मोरबी शहर के कोट इलाके के भीतर छोटे छोटे घड़ी के कारखानों में, नवीनतम घड़ियों को नए डिजाइनों में बनाया जाता है. जो देश-विदेश में लोगों के घर ऑफिस तक पहुँचती है.
विशेष रूप से आदिवासी घड़ियों को मोरबी के लैटिप्लॉट क्षेत्र के भीतर अल्फा कोट्स नामक कारखाने के अंदर बनाया जाता है, जो गुजरात सहित भारत के विभिन्न राज्यों में जहां जहां आदिवासी परिवार रहते है वहा ये घड़ियां बेचीं जाती है. आदिवासी क्षेत्र के भीतर इस घड़ी का बाजार बहुत बड़ा है और इस रिवर्स घड़ी को आदिवासी परिवारों द्वारा शुभ माना जाता है.
इस घड़ी की खासियत की बात करें तो यह घड़ी सामान्य घड़ी की तुलना में पूरे रिवरसाइड में मूवमेंट करती है और इसलिए इसे एंटी-क्लॉक के नाम से जाना जाता है जिससे अपने घर के अंदर इस रिवर्स में चलती घड़ी को रखते है.
अल्फा क्वार्ट्ज के मालिक निशांतभाई पटेल और अमिताभाई गांधी से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कुछ समय पहले आदिवासी क्षेत्र का एक व्यापारी उनके पास आया था और उन्होंने उनसे सामान्य घड़ी नहीं, बल्कि रिवरसाइड मूवमेंट करती यानी ऐंटी क्लॉक घड़ी बनाने के बारे में बात की लेकिन ये दोनों उद्योगकार यह भी सोच रहे थे कि एक व्यापारी ऐसी घड़ी क्यों मांग रहा है. तब व्यापारी ने उन्हें बताया की पृथ्वी एंटी क्लॉकवाइज घूमती है, ग्रह एंटीक्लॉक वाइज घूमते हैं. आदिवासी समाज में शादी के फेरे भी एंटी क्लॉक वाइज ही घूमते हैं. इसके अलावा समुद्र में और रेगिस्तान में उठने वाले तूफ़ान भी एंटी क्लॉक वाइज हे घूमते हैं जिससे उस दिशा में घूमने वाली चीज़ों को आदिवासी शुभ मानते है और इस आदिवासी घडी को शुभ कार्यक्रमों में उपहार के रूप में भी देते हैं.
मोरबी में कई व्यापारी कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल देश और विदेश से घड़ियाँ खरीदने के लिए मोरबी के उद्योगपतियों के पास आते हैं, साथ ही आदिवासी क्षेत्र, विशेष रूप से बनाई गई आदिवासी घड़ी को पहुंचा ने के लिए व्यापारी मोरबी की मुलाक़ात लेते है और यहीं से, उनकी जरूरतों और उनके द्वारा चुने गए मॉडलों के अनुसार वे यहां के उद्योगपतियों के साथ डिजाइन और घड़ी बनाते हैं.
इस ब्रह्मांड में जो उलटी दिशा में घूमती हैं उसे आदिवासी बहुत शुभ मानते है. आदिवासी लोगों की मांग के अनुसार, मोरबी के कारखाने में आदिवासी घड़ी के लिए बाजार देश के हर आदिवासी इलाके में है और यह लाटी प्लॉट क्षेत्र में अल्फा क्वार्ट्ज में सबसे लोकप्रिय घड़ी है.
अलमुनियम प्रगलन
भारत में अलमुनियम प्रगलन के आठ प्लांट हैं। ये उड़ीसा (नालको और बालको), पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तामिलनाडु में हैं। 2004 में भारत में 600 मिलियन टन अलमुनियम का उत्पादन हुआ था।
रसायन उद्योग
रसायन उद्योग का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में शेअर 3% है। भारत का रसायन उद्योग का स्थान एशिया में तीसरा है और विश्व में बारहवां है।
अकार्बनिक रसायन: सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड, अल्काली, सोडा ऐश और कॉस्टिक सोडा अकार्बनिक रसायन हैं। सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल उर्वरक, सिंथेटिक फाइबर, प्लास्टिक, एढ़ेसिव, पेंट और डाई बनाने में किया जाता है। सोडा ऐश का इस्तेमाल काँच, साबुन, डिटर्जेंट, कागज, आदि बनाने में होता है।
कार्बनिक रसायन: पेट्रोकेमिकल इस श्रेणी में आता है। पेट्रोकेमिकल का इस्तेमाल सिंथेटिक फाइबर, सिंथेटिक रबर, प्लास्टिक, डाई, दवा, आदि बनाने में होता है। कार्बनिक रसायन की कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल फैक्टरियाँ तेल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल प्लांट के आस पास मौजूद हैं।
रसायन उद्योग ही अपना सबसे बड़ा ग्राहक होता है।
उर्वरक उद्योग
उर्वरक उद्योग में मुख्य रूप से नाइट्रोजन युक्त उर्वरक, फॉस्फ़ेटिक उर्वरक, अमोनियम फॉस्फेट और कॉम्प्लेक्स उर्वरक का उत्पादन होता है। कॉम्प्लेक्स उर्वरक में नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश का समावेश होता है। भारत के पास वाणिज्यिक रूप से इस्तेमाल लायक पोटाश या पोटैशियम उत्पाद के भंडार नहीं होने के कारण भारत को पोटाश का आयात करना पड़ता है।
भारत नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहाँ 57 खाद कारखाने हैं जहाँ नाइट्रोजन युक्त उर्वरक और कॉम्प्लेक्स उर्वरक का उत्पादन होता है। उनमें से 29 कारखानों में यूरिया का उत्पादन होता है और 9 कारखानों में बाइप्रोडक्ट के रूप में अमोनियम सल्फेट का उत्पादन होता है। यहाँ 68 छोटे कारखाने हैं जो सिंगल सुपरफॉस्फेट बनाते हैं।
सीमेंट उद्योग
- सीमेंट उद्योग में प्रयोग होने वाला कच्चा माल भारी होता है; जैसे चूना पत्थर, सिलिका, एल्यूमिना और जिप्सम। गुजरात में सीमेंट के कई कारखाने हैं क्योंकि वहाँ बंदरगाह नजदीक है।
- भारत में सीमेंट के 128 बड़े और 323 छोटे कारखाने हैं।
- भारत के सीमेंट को क्वालिटी में सुधार के बाद से पूर्वी एशिया, गल्फ देशों, अफ्रिका और दक्षिण एशिया में अच्छा बाजार मिल गया है। उत्पादन और निर्यात के मामले में यह उद्योग अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
मोटरगाड़ी उद्योग
आज भारत में लगभग हर किस्म की मोटरगाड़ी बनती है। 1991 की आर्थिक उदारवादी नीतियों के बाद कई मोटरगाड़ी कम्पनियों ने भारत में अपना काम शुरु किया। मोटरगाड़ी के लिए आज भारत अच्छा बाजार बन गया है। भारत में अभी कार और मल्टी यूटिलिटी वेहिकल के 15 निर्माता, कॉमर्सियल वेहिकल के 9 निर्माता और दोपहिया वाहन के 15 निर्माता हैं। दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर, हैदराबाद, जमशेदपुर, बंगलोर, सानंद, पंतनगर, आदि मोटरगाड़ी उद्योग के मुख्य केंद्र हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग का मुख्य केंद्र बंगलोर है। मुम्बई, पुणे, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ और कोयम्बटूर इस उद्योग के अन्य मुख्य केंद्र हैं। देश में 18 सॉफ्टवेयर टेक्नॉलोजी पार्क हैं जहाँ सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा और उच्च डाटा संचार की सुविधा मिलती है।
इस उद्योग से भारी संख्या में रोजगार का सृजन हुआ है। 31 मार्च 2005 तक 10 लाख से अधिक लोग सूचना प्रौद्योगिकी में कार्यरत हैं। हाल के वर्षों में बीपीओ में तेजी से वृद्धि होने के कारण इस सेक्टर से विदेशी मुद्रा की अच्छी कमाई होती है।
औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरण निम्नीकरण
वायु प्रदूषण: उद्योग में वृद्धि से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। उद्योग धंधों से कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड स्तर बढ़ जाता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थ भी समस्या खड़ी करते हैं। कुछ उद्योगों से हानिकारक रसायन के रिसाव का खतरा रहता है। वायु प्रदूषण से इंसानों की सेहत, जानवरों, पादपों और भवनों पर बुरा असर पड़ता है। इससे पूरे वातावरण पर असर पड़ता है।
जल प्रदूषण: उद्योग से निकलने वाला कार्बनिक और अकार्बनिक कचरा और अपशिष्ट से जल प्रदूषण होता है। कागज, लुगदी, रसायन, कपड़ा, डाई, पेट्रोलियम रिफाइनरी, चमड़ा उद्योग, आदि जल प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार उद्योग हैं।
जल का तापीय प्रदूषण: थर्मल प्लांट से गरम पानी सीधा नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है, जिससे जल का तापीय प्रदूषण होता है। तापीय प्रदूषण से जल में रहने वाले सजीवों को बहुत नुकसान होता है क्योंकि ज्यादातर सजीव एक खास तापमान रेंज में ही जीवित रह सकते हैं।
रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट: इस प्रकार के अपशिष्ट परमाणु ऊर्जा संयंत्र से निकलते हैं। रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट को सही ढ़ंग से रखने की जरूरत होती है। ऐसे पदार्थों में हल्की सी भी लीकेज होने से इंसानों और अन्य सजीवों को होने वाले नुकसान घातक और दूरगामी होते हैं।
ध्वनि प्रदूषण: कारखानों से ध्वनि प्रदूषण की भी समस्या होती है। ध्वनि प्रदूषण से बेचैनी, उच्च रक्तचाप और बहरापन की समस्या होती है। कारखाने के मशीन, जेनरेटर, इलेक्ट्रिक ड्रिल, आदि से काफी ध्वनि प्रदूषण होता है।
गिरता रुपया, घटता विदेशी मुद्रा भंडार :- (धीरेन्द्र कुमार दुबे)
देश की अर्थव्यवस्था विरोधाभास की स्थिति में है। विकास दर आठ प्रतिशत के ऊपर आ गया है। उपभोक्ता कीमतों का सूचकांक 3.6 प्रतिशत पर है और थोक कीमतों का 4.53 प्रतिशत है। निर्यात में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यातायात, संचार, होटल व्यापार में 12 प्रतिशत वृद्धि हळ्ई है। कारखानों का उत्पादन 6.6 प्रतिशत ऊपर आया है। ये सभी आंकड़े पिछले वर्ष के अगस्त महीने से अच्छे हैं। अनाज का उत्पादन 2017-18 में बारिश सामान्य होते हुए भी रिकार्ड स्तर पर रहा। इन सबके बावजूद अर्थव्यवस्था अस्थिर है। पेट्रोल की बढ़ती कीमतें और रुपये की गिरती क्रय शक्ति ने न केवल नीति निर्धारकों की नींद उड़ा दी है, बल्कि आम आदमी भी इसकी चपेट में आने लगा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पिछले कुछ दिनों से लगातार बढ़ रही है, जिससे देश की तेल कंपनियां कीमतें बढ़ाने को मजबूर हैं।
सरकार को पेट्रोल की ड्यूटी और करों से भारी राजस्व मिलता है। केंद्र और राज्य सरकारें अपना राजस्व कम नहीं करना चाहती, क्योंकि इससे विकास योजनाओं के लिए धन की कमी हो जाएगी और सरकारी खर्चो में भी कटौती करनी पड़ेगी। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें देश की विदेशी मुद्रा का भंडार खाली कर रही हैं। अप्रैल 2018 में विदेशी मुद्रा का भंडार 426 बिलियन डॉलर था, जो आज 400 बिलियन डॉलर के आसपास आ गया है। अर्थव्यवस्था में कमजोरी के संकेत विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में विदेशी मुद्रा का निर्गमन तेजी से हुआ है।
देश का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है। आयात वृद्धि की दर निर्यात वृद्धि से अधिक है। जून 2018 में व्यापार घाटा पिछले पांच वर्षो के रिकॉर्ड तोड़ते हुए 12.79 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया। अगस्त 2018 में यह 17.4 बिलियन डॉलर था। इस दशा में यदि बदलाव नहीं आया तो 3.3 प्रतिशत का बजटीय घाटे का केंद्र सरकार का लक्ष्य पूरा हो पाएगा, इसमें संदेह है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयात करने वाला देश है। 80 प्रतिशत तेल आयात होता है। तेल उत्पादन की मात्र और उसकी कीमत निर्धारण तेल उत्पादक देशों का संगठन ओपेक करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें गिरती चढ़ती रहती हैं। पिछले तीन सप्ताह में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं। दिल्ली में अगस्त के आखिर में पेट्रोल की खुदरा कीमत 70 रुपये प्रतिलीटर थी जो अब 80 रुपये को पार कर गई है। डीजल की भी वही स्थिति है। चूंकि पेट्रोल पर वैट, ड्यूटी और टैक्स राज्य सरकारें तय करती हैं इससे देश के विभिन्न हिस्सों में पेट्रोल के दाम एक से नहीं होते। महाराष्ट्र में पेट्रोल 90 रुपये प्रति लीटर के ऊपर जा चुका है, जबकि गोवा में 70 रुपये के नीचे है। पेट्रोल, डीजल आदि की कीमत में आधे के करीब टैक्स, वितरकों का मुनाफा और ढळ्लाई खर्च शामिल होता है।
कंपनियां करती हैं कीमत निर्धारित:- देश की पेट्रोल कंपनियां तेल की कीमत निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र हैं। अधिकांश तेल कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत, अपना मुनाफा और राज्य व केंद्र में लगने वाले करों को ध्यान में रखकर ये कंपनियां पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती हैं। कीमतों में बढ़त का सिलसिला वर्ष 2010 के बाद तेज हो गया है। पेट्रोल 40 रुपये प्रति लीटर से 2013 में 63 रुपये पहुंच गया कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल और अब 80 रुपये से अधिक। एलपीजी की कीमत सरकार तय करती है। घरों में इस्तेमाल का 14.2 किलो के सिलेंडर की कीमत दिल्ली में बिना सब्सिडी के 820 रुपये और सब्सिडी के बाद 483 रुपये है। पेट्रोल के साथ-साथ डीजल और सभी ईंधन महंगे होते जा रहे हैं जिससे उपभोक्ता पूरे देश में त्रस्त हैं। डीजल की कीमत में वृद्धि किसानों की परेशानी बढ़ा रही है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने पेट्रोल पर राज्य करों में कुछ कमी की है जो 'ऊंट के मुंह में जीरे' की तरह है, पर सरकारों के राजस्व पर भारी बोझ पड़ रहा है।
भारतीय रुपया ढलान पर है। 15 अगस्त को 69.72 रुपया एक डॉलर के बराबर था, जो अब 72 रुपये के आसपास पहुंच चुका है। इतने कम समय में रुपये की कीमत में यह रिकॉर्ड गिरावट है। नीति आयोग के चेयरमैन का मानना है कि इससे चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि रुपया अपने असली कीमत पर आ रहा है। इस वर्ष के शुरू से अब तक 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट को गंभीरता से न लेना देश के लिए महंगा पड़ सकता है। सरकार यह समझ चुकी है और रुपये को थामने के लिए कुछ आवश्यक कदम उठाने की घोषणा हुई है। रुपये की कीमत में गिरावट न केवल आयात महंगा कर देता है और व्यापार घाटे को बढ़ा देता है, बल्कि विदेशी निवेश को भी प्रभावित करता है और मुद्रा स्फीति बढ़ाता है। रुपया सस्ता होने का लाभ निर्यातकों को होता है, किंतु यह लंबे समय तक नहीं चल सकता। देश के कुल आयात में कच्चे तेल का सर्वाधिक भार है जो आयात बिल को तेजी से बढ़ा रहा है, विदेशी मुद्रा के भंडार में कमी ला रही है। यह स्थिति बनी रही तो सरकार बजटीय घाटे का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएगी।
कुछ ही महीनों पूर्व भारतीय रुपया एशिया की सबसे मजबूत करेंसी थी, आज उसकी गिनती कमजोर करेंसियों में होने लगी है। विश्व की कुछ और करेंसियों लीरा, रूबल, रैंड, यूआन आदि में भी गिरावट आई है, किंतु उसे मापदंड मानकर स्थिति की गंभीरता को नजरअंदाज करना भूल होगी। अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुआ व्यापार युद्ध भी रुपये को प्रभावित कर रहा है। अमेरिका के आंतरिक बाजार में ब्याज दर में बढ़ोतरी भी रुपये पर असर डाल रही हैं, क्योंकि वहां के निवेशक अपने पूंजी बाजार की तरफ मुड़ रहे हैं। पिछले तीन महीनों में विदेशी निवेशक नौ अरब डॉलर का निवेश भारत से निकाल ले गए। रुपये को वापस पटरी पर लाने के लिए सरकार आयात घटाने, निर्यात कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल बढ़ाने और विदेशी व्यापार के नियमों को आसान बनाने के तरीकों पर विचार कर रही है। इसमें विदेशी व्यापार के लिए उधार संबंधी नियमों को आसान बनाना, कॉरपोरेट ब्रांड बाजार में पोर्टफोलियो निवेशकों की भागीदारी बढ़ाना, कॉरपोरेट बांड के इशू की 50 प्रतिशत की सीमा की समीक्षा आदि शामिल हैं। सरकार का मानना है कि इन उपायों से व्यापार घाटा नियंत्रित होगा।
अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर:- रुपये को स्थिर करने के लिए सरकार ने जिन उपायों की घोषणा की है उसका तुरंत असर नहीं दिख रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दूरगामी प्रभाव वाले उपाय हैं, इसलिए ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो रुपये की गिरावट को तत्काल रोके। रिजर्व बैंक द्वारा ओपन मार्केट ऑपरेशन को कुछ सफलता मिली थी। निवेशकों में विश्वास पैदा करने के प्रयास में तेजी आवश्यक है। रुपये में लगातार गिरावट शेयर बाजार पर भी असर डाल रही है। देशी निवेशकों का अभी पूंजी बाजार पर भरोसा बना हुआ है, जिससे स्थिति नियंत्रण में है। ऐसे में उन्हें और निवेश के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। पेट्रोल की कीमतों का निर्णय पूरी तरह से कंपनियों पर न छोड़कर, जनहित में कीमतों पर तुरंत लगाम लगाने की आवश्यकता है। रुपये को स्थिर करने में भी यह सहायक होगी।
निर्यात में पिछले महीनों में बढ़त हुई है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है, किंतु निर्यात का प्रमुख स्नोत कपड़ा और वस्त्र उद्योग सिकुड़ रहा रहा है। पिछले एक वर्ष में इसके निर्यात में 12 प्रतिशत की कमी आई है। चीन की सस्ती रेशम, रेडीमेड कपड़े और टेक्सटाईल के बहुत सारे सामान भारतीय वस्त्र उद्योग पर काले बादल बन कर छा रहे हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए। व्यापारियों को बैंक से मिलने वाले कर्ज में भी कमी आई है। जब से एनपीए के घोटाले सामने आने लगे हैं बैंक कछुए की तरह अपनी गर्दन अंदर करने में लगे हैं। उद्योगों और वाणिज्य के लिए बाजार में रुपये की कमी है। जीएसटी में व्यापारियों को जो रुपया वापस मिलना है उसमें भी सरकार देरी कर रही है जिससे व्यापारी त्रस्त हैं। उद्योगों, व्यापार और निवेश के लिए अच्छा वातावरण बना कर ही सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकती है।
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महाराष्ट्र के वन विभाग
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उद्योग और वाणिज्य (डीआईसी) के विभाग बेलगाम जिले में कई भावी उद्यमियों को प्रोत्साहन और रियायतें प्रदान करके उद्योग एवं वाणिज्य को बढ़ावा देता है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), मार्जिन मनी स्कीम और प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई) योजना जैसी योजनाओं से संबंधित जानकारी खोजें। बेलगाम संकल्पना, शिक्षा, संस्कृति आदि के बारे में उद्योगों, कारीगर क्लस्टर और चीनी के बारे में आदि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
महाराष्ट्र के लातूर में स्थानों की यात्रा
लातूर, महाराष्ट्र में सांस्कृतिक और पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारी प्राप्त करें। लातूर शहर के बीचोंबीच गंज गोलाई चौक, सोने के गहने, फुटवेयर्स, खाद्य पदार्थों मिर्च से गुड़ तक के रूप में पारंपरिक स्थानीय बर्तन के सभी प्रकार के सामान बाजारों के बारे में विवरण उपलब्ध हैं। सिधेश्वर मंदिर, रामलिंगेश्वर के मंदिर, भूतेश्वर, केशवराज, राम, दत्ता, अष्टविनायक के मंदिरों और पार्श्वनाथ मंदिरों जैसे शहर में मदिरों के बारे में सूचना प्रदान की जाती है। लातूर तक पहुंचने के लिए और महापुर में नामानंद महाराज के आश्रम के बारे, उदयगिर, देवनी बुल हत्तिवेत-देवर्जन और गंगाराम महाराज की समाधि के विवरण.
कर्नाटक माध्यमिक शिक्षा परीक्षा बोर्ड
कर्नाटक माध्यमिक शिक्षा परीक्षा बोर्ड एसएसएलसी और अन्य परीक्षाएं आयोजित करता है। परीक्षा पर सूचना उपलब्ध कराई गई है, प्रयोक्ता पूर्व परीक्षा गतिविधियां, शिक्षा अधिनियम आदि पिछले वर्ष के प्रश्न पत्र और उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। समय तालिका, परीक्षा परिपत्र और अधिसूचना विवरण पर पहुंचा जा सकता है। प्रयोक्ता विभिन्न आवेदन फार्म डाउनलोड कर सकते हैं। संपर्क जानकारी और अन्य संबंधित लिंक भी उपलब्ध हैं।
हरियाणा के भिवानी जिले में श्रम कल्याण कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल गतिविधियां
श्रम विभाग राज्य में औद्योगिक शांति और सदभाव बनाए रखने, औद्योगिक और कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने और विभाग एवं श्रम कल्याण बोर्ड द्वारा शुरू की गई श्रम कल्याण योजनाओं को लागू करने के लिए जिम्मेदारी है। श्रम विभाग के दो प्रभाग है: श्रम और कारखाना प्रभाग जो श्रम आयुक्त के अधीन कार्य करते हैं। पंजाब श्रम कल्याण निधि अधिनियम, 1965 के अंतर्गत श्रम कल्याण बोर्ड की स्थापना की गई है। श्रम आयुक्त जो श्रम कल्याण बोर्ड के प्रधान कार्यकारी अधिकारी हैं वह पदेन कल्याण आयुक्त हैं। प्रयोक्ता विभिन्न जिलों में हो रही श्रम कल्याण गतिविधियों के साथ-साथ पर्यटन स्थलों, जिले के मानचित्र.